यूरोप के संदर्भ में यह न्यायसंगत है क्योंकि माक्र्स
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यह न्यायसंगत है कि पुरोहितगणों को, ख्रीस्तयाग इसी महान तरीके से चढ़ाना चाहिए।
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अपने अहंकार, क्रोध और अज्ञान के कारण किसी को भी लगातार दोष देते रहना क्या यह न्यायसंगत है?
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क्या यह न्यायसंगत है? आईआईटी प्रवेश परीक्षा को उदाहरणार्थ देखें तो वो इतना विशिष्ट स्तर का बना दिया गया है कि अच्छे-अच्छों का दिमाग घूम जाए।
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लेकिन क्या यह न्यायसंगत है कि हमें क्रिकेट को किसी बहुराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता में सम्मिलित करना चाहिए? राष्ट्रमंडल खेलों में हम इसका हश्र देख ही चुके हैं अब क्या एशियाई खेलों की बारी है.
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ऐसे में क्या यह न्यायसंगत है कि गलती तो करें पांच क्रियाओं वाला जीव, परन्तु सजा दी जाए तीन या दो क्रियाओं वाले जीव को, वह भी उस से विवेक और विचार को निकाल कर, जब कि दण्ड या पुरस्कार का सीधा सम्बन्ध विवेक और विचार से है।